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राज
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राज 25m

cant the outbox relays be put on a round robin check every 10 or 15 minutes? and only stay connected to inbox relays?

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राज 2d

"answers burning questions like, "Who would win in a fight: a Predator or a ninja? What about a Predator or a Viking?"" https://m.youtube.com/watch?v=fbddYji1F8s

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राज 14d

अथर्व ११॰५ । यहाँ ब्रह्मचारी पुरुष तथा ब्रह्मचर्य पालन करती कन्या का कथन है। सूत्र सत्रह के सायणभाष्य में ब्रह्मचारी द्वारा वेदाध्ययनार्थ कृत कुछ कर्मों को ब्रह्मचर्य माना गया। अर्थात वेदाध्ययन स्वयम ब्रह्मचर्य नहीं। इन्द्रिय संयम उपवासादि व्रत ब्रह्मचर्य के उदाहरण। तथा स्पष्टतः कन्या के लिए पति प्राप्त्यर्थ ये कर्म विहित है वेदाध्ययनार्थ नहीं। स्मृत्यादि शास्त्र में अमुक संस्कार विशेष के नियम इस के अनुरूप ही प्रतीत होते हैं।

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ऐतरेय। स्कन्दपुराण महेश्वरखण्ड कुमारिकाखण्ड अ॰४२ सू॰२६ । अत्र तीर्थवरे पूर्वमैतरेय इति द्विजः।

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उद्धृतव्य। शास्त्र के सम्बन्ध में अनेक भ्रम तथा कुतर्कों का खण्डन धर्मालोक पुस्तक सरणी में दशकों पूर्व किया गया है। भाषा हिन्दी। अभिलेखालय जालस्थान पर इसके अंकीय संस्करण उपलब्ध हैं। https://archive.org/search?query=dharmalok

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कवषऐलूष। ऐतरेयब्राह्मण पं॰२ अ॰३ ख॰१ सायणभाष्य। दास्याः पुत्रः इत्युक्तिरधिक्षेपार्थः। कितवः द्यूतकारः तस्माद् अब्राह्मणोऽयम्। ॰। इमं कवषं देवाः सर्वेऽपि विदुः विजानन्त्येव। अतोऽस्य कितवत्वादिदोषो नास्ति॥ अर्थात ये सब गालियाँ द्यूतक्रीडा के कारण। यह आक्रोश अथवा निन्दार्थ शब्द प्रयोग काशिका ६॰३॰२२ पुत्रेऽन्यतरस्याम् तथा २॰२॰६ नञ की महाभाष्य कैयट व्याख्या में विदित हैं॥ ब्रह्मपुराण गौतमीमाहात्म्ये अ॰६९ सू॰२। पैलूष इति विख्यातः कवषस्य सुतो द्विजः।

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जाबाल। छान्दोग्यभाष्य अ॰४ ख॰४ सू॰५। ऋजवो हि ब्राह्मणा नेतरे स्वभावतः। यस्मान्न सत्याद्ब्राह्मणजातिधर्मादगा नापेतवानसि॥ यहाँ ब्राह्मण जाति माना गया है॥ मेधातिथि स्मृतिभाष्य अ॰१० सू॰५। गौतमस्यापि न ततो वचनाद्ब्राह्मणोऽयमित्यवगमः। प्रागेवासौ तं ब्राह्मण इति वेद। गोत्रं तु न वेद। गोत्रप्रश्नेन चरणप्रश्नो वेदितव्यः। तत्र उपनयनभेदोऽस्ति। न तु गोत्रभेदेनोपनयने प्रयोजनम्।

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त्र्यवरा। तो यह था तीन का महत्व। दस की सहायता से तीन की स्थापना। तीन द्वारा अमुक नवाचरण का प्रतिपादन। और ये सब शास्त्र सम्मत परिवर्तन कहा जाना।

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स्मर्त्तव्य। अमुक स्मृति विशेष के बारहवाँ अध्याय एकसौआठ से एकसौपन्द्रहवाँ सूत्रों में शिष्टा दशावरा अथवा त्र्यवरा परिषद द्वारा धार्मिक विषयों में लिए गये निर्णय मान्य बताया गया है। परन्तु इससे शास्त्र परिवर्तनीय नहीं। अनाम्नातेषुधर्मेषु से स्पष्ट है कि जो शास्त्रोक्त धार्मिक नियम हैं उनके अतिरिक्त विषयों पर ही निर्णय लेने की यह विधि है। यह भी कि तामसिकता अथवा अज्ञानता में लिए गये निर्णय अनाचरणीय।

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